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Thursday, April 30, 2009

गंवार और असभ्य लोग....

वह उस दिन बहुत गुस्से में था मेस का खाना उसे फिर पसंद ऩही आया था। उसकी नाराजगी जितनी मेस कर्मचारियों से ऩहीथी उससे कही ज्यादा अपने साथी हौस्ट्लर्स से थी

चिढ कर बडबडाता:
"- घर पर कभी ढंग का खाना
मिला हो तभी तो समझेंगे अच्छा खाना क्या होता है?
सारा माहौल खराब कर रखा है।
जिन्दगी में कभी बिजली से वास्ता ऩही पडा होगा और यहाँ आते ही ऐसे दिखाते हैं जैसे बिना ए.सी.के कभी रहे ही ऩही।
हैण्ड -पम्प चलाते - चलाते हांथों की लकीरें घिंस गयीं, यहाँ घंटों शॉवर के नीचे खड़े रहते हैं।
लोटा - डिब्बा लेकर खेतों के चक्कर काटने वाले ये यहाँ आधा- आधा घंटा बाथरूम से बाहर निकलने का नाम
ही ऩही लेते।
जीना मुश्किल कर दिया है इनलोगों ने। "

मैं चुप चाप उसकी बातें सुनता। चिढाने का मन करता पर फिर थोड़ी दया आती। अब इसमें उस बेचारे की क्या गलती जो ऐसे लोगों के साथ उसे रहना पडा। उसे थोड़े ही मालूम था की इतने नामी - गिरामी जगह पर ऐसे लोग भी पहुँच सकते हैं।

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