भूख लगती है - सबको लगती है। खाना चाहिए - सबको खाना चाहिए।
४०० लोगों का खाना बनता है हमारे यहाँ हर रोज़। सुबह, दोपहर, शाम...इधर एक महीने से सात- आठ लोग और रहने लगे हैं। उन्हें तीनों टाइम बस इसी बात का इंतज़ार रहता है की कब ये ४०० लोग खा लें ताकि जो बचा हुआ है वो उन्हें मिल जाए। अक्सरमिलता है पर कभी नही भी मिलता। बहार खड़े होकर देखते रहते हैं। थोड़ा मुस्कुराएँगे तो थोड़ा नज़रें नीची कर लेंगे।
ऐसा तुम्हे क्या मालूम है जो दूसरो को नही मालूम??
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