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Friday, March 20, 2009

सब बहुत याद आएंगे....

जेएनयू में अपने सेन्टर के सेकंड इयर के बच्चों के साथ आज मेरी आखिरी क्लास थीकिसी भी चीज़ के छूटने का दुःख तो होताही है सो इसका भी हैपर यह अच्छा है की दुःख कैसा भी हो स्थायी नही होतासोचता हूँ दुःख अगर स्थायी होने लगे तो जीनामुश्किल हो जाए लोगों काचाहें जैसा भी हो समय के साथ वह भी पीछे छूट ही जाता हैआगे जो बढ़ना है...सो चलो आगे बढ़तेहैंआगे यही बिताये पल जब याद आएंगे तो सुख देंगेकम से कम इस बात का तो फर्स्ट हैण्ड तज़रबा हम सब को है

Thursday, March 19, 2009

slumdog millionaire.....

उन्होंने रूस में "slumdog millionaire" देखी। वो हमसे पूछते हैं की हमें यह फ़िल्म कैसी लगीलिखा: जो कुछ भी दिखाया वोसच ही है, भारत ऐसा ही हैकई समस्याएँ भारत के सामने मुंह बाये खड़ी हैं, उनमे से कुछ उन्होंने दिखाया हैयह बात और है की जो दिखाया है वही पश्चि के मन में रची-बसी भारत की पारंपरिक तस्वीर से हुबहू मेल खाती हैमेल खाती है सो उनके अहम् को बखूबी संतुस्ट करती , सो ही वो धडा-धड उसको पुरस्कारों से नवाजते हैं, वर्ना फिल्मे तो और भी कुछ अच्छी बनी हैं हमारे यहाँ
यह एक पहलु है पर दूसरा पहलु यह है कि फ़िल्म को मिली कामयाबी काबिले-तारीफ है। रहमान, गुलज़ार और पोकुटी हमारे हैं।

Wednesday, March 18, 2009

ढ़ाक के वही तीन पात.....

जैसा हमने सोचा था वैसा कुछ भी नही हुआ। रुसी साहित्य से सम्बंधित किसी तरह की शुरुआत हम अपने स्तर पर नही कर सके। पहले की ही तरह बात आई-गई हो गई। सब अपने- अपने कामों में व्यस्त हैं।

Sunday, March 15, 2009

होली है....

एक और होली बीत गईना जाने क्यूं अब त्यौहार मन में कोई उल्लास नही भरतेजैसे औपचारिकता वश सबकुछ करते जाते हैंसब मना रहे हैं सो हमें भी मानाना चाहिए, सब हंस- खेल रहे हैं सो हम भी हस खेल लेते हैंसब - कर गुजरता जा रहा है, कुछ ऐसा नही है जिसके आने का कुछ विशेष उल्लास हो, जिसके आने की खुशी में उसके स्वागत की तैयारी की जाए। क्या अच्छा होता अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहे....

Monday, March 9, 2009

Russian literary circle.....

For long, we are trying to form an active Russian literary circle. I have talked several times to some of my fellow students. They all have the same in their mind. They all feel its need but we are unable to make one. Once I satrted one forum on Russian literature on Orkut. It started well, then Orkut was banned in JNU and the forum died. Today once again we talked of making one such platform...lets see what will come out of it....and lets hope that, soon there will be one such common platform for us - for the students of Russian literature in JNU(at least to start with). ...

Wednesday, March 4, 2009

जे एन यु और बदलाव का सुख...

तुमहारे आंचल में किसी का पहला साल है, किसी का दूसरा साल है, किसी का तीसरा, किसी का पांचवां हो सकता है। पर इससे ज्यादे की जरुरत नही पड़ती। यहाँ सब बदल जाते हैं। आश्चर्य की यह बदलाव बड़ा सुखद होता है। कुछ ही सालों पहले गाँव से एक अधपढ़ा, अधढंका लड़का तुमहारे पास आया था। आज उसे अच्छा खाते , पहनते, बोलते देख कर मन को बड़ा सुकून पहुँचता है। तुमने उसे बदल दिया, उसे एक नई ज़िन्दगी, नए सपने दिए हैं, उसकी आने वाली पीढियों के लिए एक नए सुखद संसार का ताना-बाना बुना है।
इसलिए तुम मुझे प्रीय हो, तुम मुझे बेहद पसंद हो, चाहता हूँ की तुम्हारा आंचल सदैव ऐसे ही फैला रहे, सदैव इसके छायें में पल बढ़कर लोग नित नई ऊँचाइयों को छुएं।