पुराने ब्लॉग से.....
"मैं रास्ते पर रेंगते हुए किसी बिलबिलाते केंचुए की तरह हूँ मुश्किल तो यह है की अपने ऊपर पड़ते पाँव या साइकिल के पहियोंको देख कर भी मैं असहाय उन्हें अपने से हो कर गुजरने देता हूँ क्यों की सांप की तरह तेज रेंग कर ना तो मैं झाडियों में छिप ही सकता हूँ और ना ही अपने बचाव में या गुस्से से ही सही फन उठा कर डरा या डस ही सकता हूँ। मैं रोज सैकडों की संख्या में मरता हूँ और हजारों की संख्या में फिर पैदा होकर उन्ही रास्तों पर बिलबिलाते हुए रेंगता हूँ ।"
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