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Friday, January 29, 2010

मैं कौन हूँ....

पुराने ब्लॉग से....
"मैं रास्ते पर रेंगते हुए किसी बिलबिलाते केंचुए की तरह हूँ। मुश्किल तो यह है कि अपने ऊपर पड़ते पाँव या साइकिल के पहियोंको देख कर भी मैं असहाय उन्हें अपने से हो कर गुजरने देता हूँ क्यों कि सांप कि तरह तेज रेंग कर ना तो मैं झाडियों में छिप हीसकता हूँ और ना ही अपने बचाव में या गुस्से से ही सही फन उठा कर डरा या डस ही सकता हूँ मैं रोज़ सैकड़ों कि संख्या  में मरता हूँ और हजारों की संख्या में फिर पैदा होकर उन्ही रास्तों पर बिलबिलाते हुए रेंगने लगता हूँ। "

Thursday, January 28, 2010

COP IN RUSSIAN....

In the previous semester we learnt Pushkin's world famous love poem "Я вас любил". This time we have introduced Mikhail Lermontov's poem "Парус". The two poems are of entirely different mood. Last time performance of the COP students was very good and we can hope that they will continue to perform well.

Monday, January 25, 2010

मजबूरी...

एक बार फिर वही अहसास
पर अफसोस कि
तोड़ न पाया जिम्मेदारियों के पाश
लो आज फिर जलाता हुँ
होली और कर देता हूँ
स्वाहा तुम्हें भी
सदा के लिए
राख कर बिखेर देता हुँ 
अतीत के गलियारों में

Thursday, January 21, 2010

इंसान....

इंसान
शहरों में
कमरों,केबिनों में
बंद हो रहा
गाँवों में
खेत, खलिहानों में
अपनों से
मिलने को
तरस रहा 
चाहकर भी
ये तिलिस्म
न तोड़ पा रहा
पल-पल
निहायत अ के ला
हो रहा 
इंसान

Tuesday, January 19, 2010

स्वाद की खातिर...सेहत के बहानें

गर्दन काट दी
चमड़ी उधेड़ दी
उलाटा पलाटा
बोटी-बोटी काटा
और लगा दी 
प्रदर्शनी
उसके जिस्म की
बोटियों की
आए खरीदार बहुतेरे
उसे करेजा चाहिए
आप गु्र्दा लिजिए
बचा-खुचा
कुत्तों को चुनने दिजिए
अंत में सबनें
अंगुलियों को चाटा 
और कहा
बड़ा मजा आया

Wednesday, January 13, 2010

स्विच इट ऑफ....




उनके होनें का अहसास उतना प्रबल न हुआ होता अगर विभिन्न प्रकार के इन दूर संचार माध्यमों का इतना विभत्स प्रचार प्रसार न हुआ होता

Monday, January 4, 2010

इल्जाम मेरे सिर....

एक अमानत
पहुँचा देना उनके घर तक
और खयानत,
दे रहा अब मेरे घर दस्तक