तुमहारे आंचल में किसी का पहला साल है, किसी का दूसरा साल है, किसी का तीसरा, किसी का पांचवां हो सकता है। पर इससे ज्यादे की जरुरत नही पड़ती। यहाँ सब बदल जाते हैं। आश्चर्य की यह बदलाव बड़ा सुखद होता है। कुछ ही सालों पहले गाँव से एक अधपढ़ा, अधढंका लड़का तुमहारे पास आया था। आज उसे अच्छा खाते , पहनते, बोलते देख कर मन को बड़ा सुकून पहुँचता है। तुमने उसे बदल दिया, उसे एक नई ज़िन्दगी, नए सपने दिए हैं, उसकी आने वाली पीढियों के लिए एक नए सुखद संसार का ताना-बाना बुना है।
इसलिए तुम मुझे प्रीय हो, तुम मुझे बेहद पसंद हो, चाहता हूँ की तुम्हारा आंचल सदैव ऐसे ही फैला रहे, सदैव इसके छायें में पल बढ़कर लोग नित नई ऊँचाइयों को छुएं।
इसलिए तुम मुझे प्रीय हो, तुम मुझे बेहद पसंद हो, चाहता हूँ की तुम्हारा आंचल सदैव ऐसे ही फैला रहे, सदैव इसके छायें में पल बढ़कर लोग नित नई ऊँचाइयों को छुएं।
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ReplyDeleteThe relation with the JNU for every student who studied here is unbelievable like a second home to the student,and once you are away from here .A silent sweet memory goes forever, very nicely expressed.
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