सब बहुत याद आएंगे....
जेएनयू में अपने सेन्टर के सेकंड इयर के बच्चों के साथ आज मेरी आखिरी क्लास थी। किसी भी चीज़ के छूटने का दुःख तो होताही है सो इसका भी है। पर यह अच्छा है की दुःख कैसा भी हो स्थायी नही होता। सोचता हूँ दुःख अगर स्थायी होने लगे तो जीनामुश्किल हो जाए लोगों का। चाहें जैसा भी हो समय के साथ वह भी पीछे छूट ही जाता है। आगे जो बढ़ना है...सो चलो आगे बढ़तेहैं। आगे यही बिताये पल जब याद आएंगे तो सुख देंगे। कम से कम इस बात का तो फर्स्ट हैण्ड तज़रबा हम सब को है।
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