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Friday, March 20, 2009

सब बहुत याद आएंगे....

जेएनयू में अपने सेन्टर के सेकंड इयर के बच्चों के साथ आज मेरी आखिरी क्लास थीकिसी भी चीज़ के छूटने का दुःख तो होताही है सो इसका भी हैपर यह अच्छा है की दुःख कैसा भी हो स्थायी नही होतासोचता हूँ दुःख अगर स्थायी होने लगे तो जीनामुश्किल हो जाए लोगों काचाहें जैसा भी हो समय के साथ वह भी पीछे छूट ही जाता हैआगे जो बढ़ना है...सो चलो आगे बढ़तेहैंआगे यही बिताये पल जब याद आएंगे तो सुख देंगेकम से कम इस बात का तो फर्स्ट हैण्ड तज़रबा हम सब को है

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