एक और होली बीत गई । ना जाने क्यूं अब त्यौहार मन में कोई उल्लास नही भरते। जैसे औपचारिकता वश सबकुछ करते जाते हैं। सब मना रहे हैं सो हमें भी मानाना चाहिए, सब हंस- खेल रहे हैं सो हम भी हस खेल लेते हैं। सब आ-आ कर गुजरता जा रहा है, कुछ ऐसा नही है जिसके आने का कुछ विशेष उल्लास हो, जिसके आने की खुशी में उसके स्वागत की तैयारी की जाए। क्या अच्छा होता अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहे....
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