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Sunday, March 15, 2009

होली है....

एक और होली बीत गईना जाने क्यूं अब त्यौहार मन में कोई उल्लास नही भरतेजैसे औपचारिकता वश सबकुछ करते जाते हैंसब मना रहे हैं सो हमें भी मानाना चाहिए, सब हंस- खेल रहे हैं सो हम भी हस खेल लेते हैंसब - कर गुजरता जा रहा है, कुछ ऐसा नही है जिसके आने का कुछ विशेष उल्लास हो, जिसके आने की खुशी में उसके स्वागत की तैयारी की जाए। क्या अच्छा होता अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहे....

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