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Monday, March 30, 2015

रुसी कवि कन्सतान्तिन बालमन्त की कविता



शिवानी को उसके जन्मदिन पर सप्रेम भेंट...


मोहब्बत करता हूँ तुमसे, समंदर, आसमान और अपने गाने की कला से अधिक

मोहब्बत करता हूँ तुमसे, जितने दिन मिले हैं मुझे इस धरती पर उससे अधिक

तुम अकेली मुझे रौशन करती हो, जैसे सितारा कोई शांत सुदूर में
तुम वो जलयान हो जो नही डूबता, न सपने में, न लहरों में, न अंधेरों में

मैं प्रेम कर बैठा तुमसे अचानक, पल में, बस यूँ ही

मैने तुम्हे देखा – जैसे अँधे की फैल जाएंगी अचानक आँखें 
और दृष्टि पाकर, अचंभित होगा, कि इस दुनिया में सब कैसे गुत्थम गुत्था हैं
कि बेपनाह नीचे की ओर, पन्ने में, बह रहा है फिरोजा

याद है मुझे। किताब खोल कर, तुम धीरे-धीरे पन्नों को सरसरा रही थी

मैने पूछा: बर्फ का हृदय में अपवर्तित होना ठीक तो है?”
तुम चमकी मेरी ओर, पल में पुतलियाँ तुम्हारी नरम पड़ गईं
मोहब्बत करता हूँ – और यह मोहब्बत गाता है – मोहब्बत के बारे में – मोहब्बत के लिए

मूल - कन्सतांतिन बाल्मन्त
अनुवाद - कुँवर कान्त

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