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Tuesday, March 24, 2015

शुक्शीन की कहानी "लफ्फाज"

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तभी अँधेरे को चीर अलाव के पास प्रकट हुई एक महिला, पेत्का की माँ।
- क्या करुँ मैं तुम लोगों का?! -  वह चिल्लाई। - वहाँ मैं पागल हुई जा रही हूँ और ये यहाँ अलाव का मजा ले रहे हैँ। चलो घर...कितनी बार, पिताजी, मैने आपसे कहा है कि नदी के पास रात तक मत रुकिएगा। डर लगता है मुझे, आप समझते क्यों नही?
दद्दु पेत्का के साथ चुपचाप उठे और जाल समेटने लगे। माँ अलाव के पास खड़ी थी और उन्हे देख रही थी।
- मछली कहाँ है? - माँ ने पूछा।
- क्या? - दद्दु को सुनाई नही दिया।
- पूछ रही है: मछली कहाँ है? - पेत्का ने जोर से कहा।
- मछली? - दद्दु ने पेत्का को देखा। - मछली पानी में है। और वो कहाँ रह सकती है।
माँ हँस पड़ी।
- अरे लफ्फाजों, - उसने कहा। - अगर एक बार और मुझे रात तक इंतजार करना पड़ा...बापु से शिकायत कर दुंगी, तो खुद ही समझना। वो तुम लोगों से फिर दुसरे तरीके से बात करेगा।
दद्दु ने कोई प्रतिक्रिया नही की। कंधे पर भारी जाल फेंका और पगडंडी पर सबसे पहले चल पड़ा, माँ उसके पीछे। पेत्का ने अलाव बुझाई और भाग कर उनके पास पहुँच गया।
चुप-चाप चले जा रहे थे।
नदी शोर मचा रही थी। पॉप्लर के वृक्षों में हवा गुँजायमान थी।

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