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Saturday, April 4, 2015

कैसे लिखुँ...


कैसे लिखुं शब्दों में उस दर्द को
नम आँखें
काँपते होंठ
सुन्न होता शरीर
आँखों के आगे छाता
घोर अंधकार
लिख तो दिया
पर लिखा नही
आँखों का पानी
होंठों की जुबानी
शरीर से परे
आजाद होने को छटपटाता
स्याह आकाश
कैसे लिखुं शब्दों में इस हर्ष को
पथरीली आँखें
जर्द होंठ
अकड़ा हुआ शरीर
पर्दे के पीछे छाता
झीना प्रकाश

- कुँवर कान्त


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