है सौभाग्य ये हमारा,
विश्वास किजिए,
और सब इसे जानते हैं।
सौभाग्य, कि हम
मृत्यु को
फौरन भूल जाने की
कला जानते हैं।
न बुद्धि से, न झूठी-बहादुरी
से।
(अगर जानते हो, - भजते
रहो)
पर मन से, खून से,
तन से
नही याद करते हम
उसे।
ओह, सौभाग्य जो है
क्षणभंगुर, क्षीण:
वो शब्द है, जैसे पंक्तियों के बीच;
आँखें बीमार
ब्च्चे की;
गला हुआ फूल पानी
में, -
और कोई फुसफुसाता
है: “बहुत हुआ!”
और पुन: जहरीला हो गया खून,
और कुढ़ता है शिथिल पड़े हृदय में
छला हुआ प्रेम।
नहीं, अच्छा हो
हममें से कोई इस संसार में
कोई भी न रहे।
रहें तो केवल जानवर,
और बच्चे,
जो अनभिज्ञ हैं इन सब से।
मूल - जिनाइदा गिपिउस
अनवाद - कुँवर कान्त
|
Translate this web page in your own language
Wednesday, March 25, 2015
जिनाइदा गीप्पिउस की कविता "Счастье"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment