जब शाम को ऑफिस से घर लौटता हुँ तो बहुत थका हुआ होता हुँ। एक ही इच्छा बाकी रहती है कि बिस्तर पर गिरुँ और बस सो जाउँ। पर बचपन से माँ की रटाई नसीहत नही भूलती: "रात को कभी भूखे पेट नही सोना चाहिए"। सो बिस्तर पर पड़ा खुद को याद दिलाता रहता हुँ कि अभी खाना पकाना है, कि अभी सोना नही है।
हर दिन खाना बनाने के पहले यही सोचता हुँ कि अगर खाना खाना मजबूरी न होती तो कभी न बनाता। पर पकाने के बाद जब खाना लेकर गुरुदेव के स्वरुप के सामने बैठता हुँ तो एक अजीब से सुकून का एहसास होता है। जब खा रहा होता हुँ तो किसी उत्सव के से भाव मन को विभोर कर रहे होते है और पीछे मजबूरी वाले ख्याल पर खेद प्रकट करते हुए खुद से वादा कर रहा होता हुँ कि आगे से खाना मै शौक से बनाउंगा न कि मजबूरीवश।
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