कितना अच्छा लगता है जब एक शिक्षक के रुप में आप बच्चों के साथ ईमानदारी पूर्वक अपना ज्ञान साझा करते हैं और फिर वही बच्चे आपके उस परिश्रम के एवज में थोड़ा सम्मानऔर प्यार आपको वापस लौटाते हैँ। इसी प्रक्रिया का एक सुखद उदाहरण आज डिमरी सर और उनके द्वारा पढ़ाए गए विद्यार्थियों ने पेश किया।
रशियन फस्ट ईयर के बच्चों ने डिमरी सर को विदाई देने के उद्देश्य से एक छोटे पर प्यारे से कार्यक्रम का आयोजन किया। मैं उनके साथ एक्स्टर्नल के रुप में इन्ही बच्चों के सेमेस्टर की अंतिम परिक्षा में शामिल था। परीक्षा समाप्त होते ही बच्चों ने आग्रह किया की मैं डिमरी सर को थोड़ी देर तक व्यस्त रखुं ताकि वे जरुरी तैयारियाँ कर सकें। हम चाय पीने चले गए इतनी देर में उन्होने पंखे के उपर फूल वगैरह रख दिए। जब तक लौट कर आए तब तक उन्होने सारी तैयारी पूरी कर ली थी और स्कूल के अन्य अध्यापकगण भी आ चुके थे। सर के अपना स्थान सम्भालते ही उन्होने सामने केक सजाया और मोमबत्ती जलाई फिर पंखा चलाया और फूलों की बरसात के बीच सर ने केक काटा। बस शुरु हो गया उनको केक खिलाने का सिलसिला। सारे बच्चे उन्हे अपने हाथों से केक खिलाना चाहते थे। फिर उनके लिए तैयार की गई एक स्पीच पढ़ी उन्होने और प्यारी सी कविता सुनाई। थोड़ा मजाक भी किया "सर अब स्ट्रेस और इन्टोनेशन का क्या होगा?" और एक ने तो उनसे ही प्रश्न पूछ डाला "Что вы любите делать в свободное время?" अर्थात "आप खाली समय में क्या करना पसंद करते हैं?" अभी थोड़ी देर पहले तक वो बच्चों से यही प्रश्न पूछ रहे थे। एक बच्चे ने मशहूर भोजपूरी लोकगीत के तर्ज पर गाना गाया जिसके बोल थेः "इएफएल के रशियन पढईया सबके दीवाना बनवले बा"।
इस तरह के आयोजनों को देख कर मन को थोड़ा सुकून मिलता है कि चलो शिक्षक और विद्यार्थी का रिस्ता अभी पूरी तरह दूसरे काम-काजी सम्बंधों की तरह रुखा-सुखा यानि प्रोफेसनल नहीं हुआ है कि अभी भी इसमें भावनाओं की नमी बाकी है।