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Monday, April 25, 2011

डिमरी सर के लिए...

कितना अच्छा लगता है जब एक शिक्षक के रुप में आप बच्चों के साथ ईमानदारी पूर्वक अपना ज्ञान साझा करते हैं और फिर वही बच्चे आपके उस परिश्रम के एवज में थोड़ा सम्मानऔर प्यार आपको वापस लौटाते हैँ। इसी प्रक्रिया का एक सुखद उदाहरण आज डिमरी सर और उनके द्वारा पढ़ाए गए विद्यार्थियों ने पेश किया।
रशियन फस्ट ईयर के बच्चों ने डिमरी सर को विदाई देने के उद्देश्य से एक छोटे पर प्यारे से कार्यक्रम का आयोजन किया। मैं उनके साथ एक्स्टर्नल के रुप में इन्ही बच्चों के सेमेस्टर की अंतिम परिक्षा में शामिल था। परीक्षा समाप्त होते ही बच्चों ने आग्रह किया की मैं डिमरी सर को थोड़ी देर तक व्यस्त रखुं ताकि वे जरुरी तैयारियाँ कर सकें। हम चाय पीने चले गए इतनी देर में उन्होने पंखे के उपर फूल वगैरह रख दिए। जब तक लौट कर आए तब तक उन्होने सारी तैयारी पूरी कर ली थी और स्कूल के अन्य अध्यापकगण भी आ चुके थे। सर के अपना स्थान सम्भालते ही उन्होने सामने केक सजाया और मोमबत्ती जलाई फिर पंखा चलाया और फूलों की बरसात के बीच सर ने केक काटा। बस शुरु हो गया उनको केक खिलाने का सिलसिला। सारे बच्चे उन्हे अपने हाथों से केक खिलाना चाहते थे। फिर उनके लिए तैयार की गई एक स्पीच पढ़ी उन्होने और प्यारी सी कविता सुनाई। थोड़ा मजाक भी किया  "सर अब स्ट्रेस और इन्टोनेशन का क्या होगा?" और एक ने तो उनसे ही प्रश्न पूछ डाला "Что вы любите делать в свободное время?" अर्थात "आप खाली समय में क्या करना पसंद करते हैं?" अभी थोड़ी देर पहले तक वो बच्चों से यही प्रश्न पूछ रहे थे। एक बच्चे ने मशहूर भोजपूरी लोकगीत के तर्ज पर गाना गाया जिसके बोल थेः "इएफएल के रशियन पढईया सबके दीवाना बनवले बा"। 
   इस तरह के आयोजनों को देख कर मन को थोड़ा सुकून मिलता है कि चलो शिक्षक और विद्यार्थी का रिस्ता अभी पूरी तरह दूसरे काम-काजी सम्बंधों की तरह रुखा-सुखा यानि प्रोफेसनल नहीं हुआ है कि अभी भी इसमें भावनाओं की नमी बाकी है।
 


Monday, April 11, 2011

तेरे साये में...

हैदराबाद में आने के बाद गुरु घर की सेवा करने के खूब अवसर मिले जो दिल्ली में काफी पास होते हुए भी संभव न हो सका। यहाँ आने के बाद ही सेवा और साधना ठीक से हो सकी और तभी गुरु के उस महान ज्ञान को थोड़ा बहुत समझ सका हूँ। अब तो बस यही प्रार्थना करता हूँ किः
तुम ऐसे ही सेवा के अवसर
उपलब्ध कराते रहना प्रभु
कि मैं तेरे समीप
रौशनी में रहना चाहता हूँ
कि मैं फिर पलटकर
उन अंधेरी गलियों में 
जाना नहीं चाहता
फिर-फिर जब
ये मुझको खुद में समेटने लगे
जब खुद को भूल
मैं इनकी ओर बढ़ने लगुँ
  इक खबर बस भिजवा देना
जरा याद दिला देना

Saturday, April 9, 2011

गाँव की पार्ट टाइम नौकरी...

घर के सामने के आम के पेंड़ की यह डाल सूख गई थी सो हमने उसे काट देने की सोची। सही में भी कुल्हाड़ियां चलाईं थीं पर यह तस्वीर तो सिर्फ तस्वीर खिंचवाने के उद्देश्य से पोज ले कर खिंची गई थी। लकड़ी काटते हुए फोटो खिंचवाना अब बचकानी हरकत सी लगती है। अब खिंचवा ही लिया है तो चलो चिपका देते हैं ब्लॉग पर।
गाँव जा कर पार्ट टाइम में ऐसे ही दूसरे बहुत से काम करते हुए खूब मजा आता है। अच्छी तरह समझता हूँ कि अगर फूल टाइम यही करना पड़े तो  सारी हेकड़ी निकल जाएगी।

Friday, April 8, 2011

नर्मदा मेस कर्मचारियों और साथी हॉस्टलर्स के साथ...

नर्मदा हॉस्टल में रहने का मजा ही कुछ और था। इस हॉस्टल से इतना प्यार हो गया था कि जब एम.फिल मे नर्मदा छोड़ने की बात आई तो कई दिनों तक मैने DSW के चक्कर लगाए कि मुझे डबल रहने में कोई ऐतराज नहीं कृप्या मुझे नर्मदा में ही रहने दिया जाए। पर ऐसा संभव ही नहीं था। आखिर कावेरी जाना पड़ा।

Thursday, April 7, 2011

CRS मार्च ऑन...

फेसबुक पर मिली मुझे यह तस्वीर। खींचने वाले का धन्यवाद कि अब यादगार के रुप में इसे संभाल लिया है मैने। इन्ही नौजवान साथियों के साथ के साथ शुरु किया था मैने रुसी पढ़ाने का सिलसिला। कुछ नटखट, कुछ सौम्य पर प्यार बहुत दिया मुझे इन्होने।

Wednesday, April 6, 2011

कितना चाहते हैं हम खुद को...

             JNU की एक सुबह PSR और STADIUM के बीच भटकते हुए

Tuesday, April 5, 2011

                                  हो कभी न उनके मंसूबे पूरे
                                  चाहते हैं जो कि जहाँ में
                                  ना कोई जिन्दा बचे........
                                                                साभार दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान