बहुत इंतजार किया सुबह से शाम और फिर देर रात तक कि शायद अब मिल पाउं पर आपसे मिल न सका। हमारे और आपके बीच वो निर्दयी बाड़ आ गया, वो भी लोहे का कंटीला बाड़। उसके पार मैं भला कैसे जा पाता। मैं जहां जहां गया वो हर बार मेरे आगे ही आकर खड़ा हो गया और आपसे मिलनें न दिया। जरुर कोई वज़ह होगी जो मैं समझ नहीं पा रहा, कोई मजबूरी होगी जिससे मैं अन्जान हुँ वर्ना न आप इतनें कठोर न प्रकृति इतनी नि्र्दयी।
No comments:
Post a Comment