Translate this web page in your own language

Tuesday, July 21, 2009

Ideal State...


Yesterday, finished reading George Orwell's novel "1984". Till last page I was wishing that Winston will some how survive and will blow away the cruel and inhuman kingdom of Big Brother. But he failed...

Monday, July 20, 2009

कल..

शायद वर्ष 2005 में खींची गई थी यह तस्वीर। रुसी अध्ययन केन्द्र, जे.एन.यु के द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद हम सब इकठ्ठा हुए थे। चार साल ही बीता है पर तस्वीर में मौज़ूद अधिकांस विद्यार्थी अब जे.एन.यु के छात्र नहीं रहे।
वो जो बीत गया......

Thursday, July 16, 2009

बचपन की कहानियां.....

गर्मी की छुट्टियों के दौरान, गोबर से लिपी फर्श पर सिर्फ चादर बिछा कर पापा को चारों ओर से घेरे हम सोए थे। उनसे कहानी सुनाने की जब खूब जिद की तो उन्होंने "पंचकौड़िया" वाली कहानी सुनाई थी। फिर अगले ही दिन उन्होने "रानी पद्मावती" वाली कहानी सुनाई। "भरबितना" की कहानी किसने सुनाई ये याद नही रहा।
चाचा जी की मनपसंद कहानी थी: "एगो राजा रहलें। उ ढेंकुल गड़वलें। ओपर कौवा बइठल।डगो-मगो केकरा मुंह में....."और हम सब चिल्लाते: हिनका मुह में, हूनका मूंह में। दूसरी कहानी जो वो जरुर सुनाते वो थी: "........राजा के लाल-गाल देख लेहनीं.." वाली।
अम्मा को हम हमेशा रात को सोने के पहले परेशान करते। उनकी एक ही आदत है, बिछौने पर गिरते ही सो जाती हैं।दिन भर का काम ही इतना होता है। हम फिर भी परेशान करते। परेशान हो कर वो हमेशा कहतीं "कह/मतकह" वाली कहानी सुनाती....हम फिर भी न मानते और "सात भैंसी के सात चभोका सोर सेर घीउ खाउं रे" वाली कहानी सुन कर ही दम लेते।
इनके अलावा बचपन में कोई कहानी नहीं सुनीं।

Wednesday, July 15, 2009

मॉस्को शहर में....






यह सन् 2007 दिसम्बर की बात है। मैं उस शहर में था जहां जाने का सपना रशीयन लैंगवेज की पढ़ाई कर रहा हर विदेशी छात्र देखता है। माइनस तीन डिग्री तापमान था और मस्त धूप खिली थी। सच में वे सात दिन किसी सपने जैसे ही थे।

जीवन...

ज्ञात-अज्ञात एक-एक कण कभी न खत्म होने वाली अंधेरी सुरंगों में अनंत तक चक्कर काटने को शापित हैं। हर कण के भीतर चकाचौंध करने को बेताब रौशनी - और भीतर ही भीतर समाती जा रही है, अंधेरे का घेरा और गहरा ही गहरा होता जा रहा है। समझ नहीं आता बाहर फैलते अंधेरे को भगाऊं या भीतर ही भीतर समाती रौशनी के साथ हो जाऊं। पर उससे पहले ये ही नहीं जान पा रहा कि मैं किसके ज्यादा क़रीब हुं।

Thursday, July 9, 2009

Inner and outer space...

On one side the inner space is witnessing an unending stream of impressions and on the other hand lies this outer world where every moment a new thing is happening. Will I be able to record them both or better I abondon one and concenterate on the other???
Who talks of making a balance?

Fear of ???

When will I be able to throw away the fear that is sitting deep inside me. I don't remember the date on which it became one with my identity. Now it seems as if I was born like that only. Nothing exist except you. It is you who has manifested ...self in every thing that I am percieving or even that which I can not...then of whom I am afraid of?

Wednesday, July 8, 2009

हवाई सफर....

वो उड़ने के ठीक पहले, बेल्ट बांधने को कहते हैं और फिर लाइम वाटर देते हैं। आखिर क्यों भला? इगर कहता है: वो इसलिए कि आदमी को डर न लगे, उसका मन बहला रहे। आखिर मैं इस सत्य को महसूस क्यों नही कर पाता कि मैं जमीन पर नही बल्कि जमीन से कइ एक किलोमिटर उपर हवा मे तैर रहा हुं। इस सहज से दिखने वाले रोमांच से मैं वंचित क्यों रह जाता हुं? मलान्या काकी को डरा दिया - इंजन बंद हों जाए तो हांथ से छुटे कु्ल्हाड़ी की तरह गिरता है।चुनने के लिए हड्डियां भी नहीं मिलतीं।
तु जलता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं। तुझे इर्ष्या हो रही है। मुझे पता चल चुका है। अब तेरी एक न सुनेंगे। आगे बढ़ेगे ्अब हम।
सब घाल-मेल कर दिया। इसमें का उसमें, उसमें का इसमें।