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Wednesday, July 15, 2009

जीवन...

ज्ञात-अज्ञात एक-एक कण कभी न खत्म होने वाली अंधेरी सुरंगों में अनंत तक चक्कर काटने को शापित हैं। हर कण के भीतर चकाचौंध करने को बेताब रौशनी - और भीतर ही भीतर समाती जा रही है, अंधेरे का घेरा और गहरा ही गहरा होता जा रहा है। समझ नहीं आता बाहर फैलते अंधेरे को भगाऊं या भीतर ही भीतर समाती रौशनी के साथ हो जाऊं। पर उससे पहले ये ही नहीं जान पा रहा कि मैं किसके ज्यादा क़रीब हुं।

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