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Tuesday, May 17, 2011

कोढ़ी बुढ़िया

अभी बाजार बंद है
मंडरा रहे हैं सड़कों पर
दूधिये और अखबार वाले
और घूम रहे हैँ भिखमंगे
बंद डिजायनर साड़ियों की दूकान
सामने बैठी है चीथड़ों में लिपटी
एक कोढ़ी बुढिया
दो पोटले साथ लिए
एक स्टील का गिलास और
एक छोटा भगोना हाथ लिए
फैलाती है वह अपने कोढ फुटे
हाथ आने-जाने वालों को सामने
हाथों में है चुड़ियाँ
और नाक में चमकती
सुनहले रंग की कील
.
.
.
लगता है काफी माल
बटुर गया है
सो लगाती है हिसाब
पहले सिक्के गिन रखती है
बटुए में
फिर लगाती है वह हिसाब पापी पेट का
पॉलीथीन खोल-खोल कर देखती है
सूंघती है, छूती है और बांटती है
उन्हे दो हिस्सों में
एक को झोले में डाल
दूसरा फेंक आती है
कूड़े के ढेर में
टूटे चप्पल एक ओर रख
अपने आसनी को झाड़ती है
मुझे लगा कि वो अपना दूकान
समेट रही है कि
शोरुम के खुलने का समय
हो रहा है
पर नहीं दिशा बदल कर
वह एक बार फिर बैठ जाती है
अब उसके सामनै है रविवार
की प्रार्थना के लिए जुट रहे लोगों का
"The King's Temple".

Wednesday, May 11, 2011

I owe it all to them...

हमारे अम्मा और पापा, जिन्होने हमारे लिए अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर दीँ। 
अपनी कुछ तस्वीरें तक सम्भाल कर रखने का ख्याल नहीं किया।
यह एक कोई 30-35 साल पुरानी सौगात हमारे हाथ लगी जिसे संजो लिया।

Monday, May 9, 2011

कबीर के दोहों का रुसी में अनुवाद - समीक्षा

जब जेएनयु में था तब वरयाम सर ने बहुत सारी किताबें मुझे उपहार स्वरुप दी थीं। उन्हीं में से एक - कबीर के दोहों का रुसी में अनुवादित संकलन था। यह अनुवाद मूल भाषा हिन्दी से रुसी भाषा में येलेना शराबचियेवा और अनिल जनविजय जी द्वारा किया गया है। इसी संकलन से एक दोहा और उसका रुसी अनुवाद उद्घृत कर रहा हूँ। प्रस्तुत दोहा आध्यात्मिक जगत के मार्ग पर अग्रसर साधक (जो यहाँ स्वयं कबीर हैं) के आध्यात्मिक अनुभवों पर आधारित है। 

सर गगन गुफा में अजर झरे।
बिन बाजा झनकार उठे जहँ परे जब ध्यान धरे
बिन ताल जँह कँवल फुलाने तेहि चढ़ि हंसा केलि करे।
बिन चंदा उजियारा दरसे जहां तहँ हंसा नजर  परे
दसबे द्वार तारि लागी अलख पुरुष जाके ध्यान धरे।
काल कराल निकट नहिं आवै, काम क्रोध मद लोभ जरे।
जुगन जुगन की तृष्णा बुझानी कर्म धर्म अध व्याधि टरे।
कहे कबीर सुनो भई साधो अमर होय कबहुं न मरे।

Нектарный дождь идёт все время
В той сфере неба, что от взора скрыта.
Без инструментов музыка прекрасная звучит.
Лотос цветет, но нет резервуара,
И лебеди вокруг резвятся.
Там нет луны, 
Но залито все ярким лунным светом.
Когда Всевышний начинает думать о тебе,
Снимается замок с десятой двери, -
Ни смерть, ни страх приблизиться уже не могут,
Сгорает похоть, гнев, гордыня, жадность; 
Жажда, что мучила на протяженье
Многих юг, утоленье получает;
Болезни все, и карма вся, джапа - 
Все исчезает.
Говорит Кабир:
"Слушай, о садху!
Ты станешь бессмертным,
Ты никогда не умрёшь".

सर्व श्री आशुतोष जी महाराज के शिश्यत्व में आध्यात्म मार्ग पर अग्रसर हूँ और महाराज जी की कृपा से ही इस क्षेत्र की बारीकियों की जो थोड़ी-बहुत समझ मुझमें विकसित हूई है उसके आधार पर अनुवाद पर टिप्पाणि कर रहा हूँ। 
अनुवाद पठनीयता के दृष्टिकोण से अच्छा है। पठनीयता बनाए रखने के उद्देश्य से ही रुसी में पंक्तियों की संख्या ज्यादा हो गई है जो उचित है। इसके बावजूद कुछ ऐसे बिन्दु हैं जहाँ सुधार की गुंजाइश है। जिन शब्दों को गुलाबी रंग से मार्क किया है उनका अनुवाद नहीं हुआ है और जिस पंक्ति को नीले रंग से चिन्हित किया है उसका अनुवाद संतोषजनक नहीं है। "सर" और "गुफा" ये दोनों ही शब्द बड़े ही महत्वपूर्ण हैं इन्हें किसी भी स्थिति में हटाया नहीं जाना चाहिए था। बिना किसी बाजे के झनकार तभी उठती है जब साधक ध्यान धरता है। अनुवाद में बाजे के बगैर झनकार तो है पर ध्यान का जिक्र कहीं नहीं है। मूल में हंस एक है पर अनुवाद में हंस कई हो गए हैं जो आधयात्म के अनुसार बिल्कुल गलत है। कबीर कहते हैं कि बिन चंदा के उजियारा तब होता है जब उस हंसा पर नजर पड़ती है जबकि अनुवाद में बिन चंदा के उजियारा तो है पर हंसा पर नजर पड़ने का बात गोल है। दसवें द्वार पर ताला लगे होने की बात कबीर कर रहे हैं, अलख पुरुष जिसका ध्यान करता है परन्तु अनुवाद में उस ताले के ईश्वर के द्वारा याद किए जाने पर खुल जाने का जिक्र करना अनुवादक की अपनी कल्पना है। अंतिम की तीन पंक्तियों का अनुवाद बिल्कुल परफेक्ट है।


Wednesday, May 4, 2011

मसूरी के "गनरॉक" पर

साल 2004, रुसी सीखना अभी शुरु ही किया था कि हमें गर्मी की छुट्टियों में पार्ट टाइम नौकरी करने देहरादून जाने का सुनहरा अवसर मिला और बस बोरिया-बिस्तर बाँध हम पहुँच गए उत्तरांचल।
इसी दौरान मसुरी जाने का मौका मिला और यह तस्वीर मसूरी की सबसे उँचे स्थान "गन रॉक" की है। मीणा भाई, धर्मेन्द्र बाबु, सुमन ब्रदर्स (चंदन सुमन एवं शेखर सुमन जी) के साथ गुजारे गए वो दिन यादगार रहेंगे।