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Tuesday, May 17, 2011

कोढ़ी बुढ़िया

अभी बाजार बंद है
मंडरा रहे हैं सड़कों पर
दूधिये और अखबार वाले
और घूम रहे हैँ भिखमंगे
बंद डिजायनर साड़ियों की दूकान
सामने बैठी है चीथड़ों में लिपटी
एक कोढ़ी बुढिया
दो पोटले साथ लिए
एक स्टील का गिलास और
एक छोटा भगोना हाथ लिए
फैलाती है वह अपने कोढ फुटे
हाथ आने-जाने वालों को सामने
हाथों में है चुड़ियाँ
और नाक में चमकती
सुनहले रंग की कील
.
.
.
लगता है काफी माल
बटुर गया है
सो लगाती है हिसाब
पहले सिक्के गिन रखती है
बटुए में
फिर लगाती है वह हिसाब पापी पेट का
पॉलीथीन खोल-खोल कर देखती है
सूंघती है, छूती है और बांटती है
उन्हे दो हिस्सों में
एक को झोले में डाल
दूसरा फेंक आती है
कूड़े के ढेर में
टूटे चप्पल एक ओर रख
अपने आसनी को झाड़ती है
मुझे लगा कि वो अपना दूकान
समेट रही है कि
शोरुम के खुलने का समय
हो रहा है
पर नहीं दिशा बदल कर
वह एक बार फिर बैठ जाती है
अब उसके सामनै है रविवार
की प्रार्थना के लिए जुट रहे लोगों का
"The King's Temple".

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