Kunwar Kant
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Monday, January 25, 2010
मजबूरी...
एक बार फिर वही अहसास
पर अफसोस कि
तोड़ न पाया जिम्मेदारियों के पाश
लो आज फिर जलाता हुँ
होली और कर देता हूँ
स्वाहा तुम्हें भी
सदा के लिए
राख कर बिखेर देता हुँ
अतीत के गलियारों में
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