इंसान
शहरों में
कमरों,केबिनों में
बंद हो रहा
गाँवों में
खेत, खलिहानों में
अपनों से
मिलने को
तरस रहा
चाहकर भी
ये तिलिस्म
शहरों में
कमरों,केबिनों में
बंद हो रहा
गाँवों में
खेत, खलिहानों में
अपनों से
मिलने को
तरस रहा
चाहकर भी
ये तिलिस्म
न तोड़ पा रहा
पल-पल
निहायत अ के ला
हो रहा
निहायत अ के ला
हो रहा
इंसान
interesting poem sir, keep it up sir aaj jo real life me jo ho raha hai vahi sab dekhte hue aap likh rahe hai jo aaj ke bahut kam hi poet likhte hai ......... kafi achha hai sir
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