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Friday, February 12, 2010

रीढ़

इतना लचीला बनाओ
कि नाक सटे
घुटनें के बाद और
सिर का पिछला भाग 
घुटनें के आगे
घोंट-घोंट कर लबसी
बना दो कि
जहें हाँथ डालो तहें
घुस जाए
और मिलाते रहो पानी
की अकड़नें न पाए।
कि अकड़नें और टुटनें
के बीच
उसके होनें, न होनें 
के बीच 
का अंतर ही
छु-मंतर हो जाए।

1 comment:

  1. सर, कविता तो बहुत ही खुबसूरत है पर मुझे कुछ पंक्तिया समझ में नहीं आई

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