इतना लचीला बनाओ
कि नाक सटे
घुटनें के बाद और
सिर का पिछला भाग
घुटनें के आगे
घोंट-घोंट कर लबसी
बना दो कि
जहें हाँथ डालो तहें
घुस जाए
और मिलाते रहो पानी
की अकड़नें न पाए।
कि अकड़नें और टुटनें
के बीच
उसके होनें, न होनें
के बीच
का अंतर ही
छु-मंतर हो जाए।
सर, कविता तो बहुत ही खुबसूरत है पर मुझे कुछ पंक्तिया समझ में नहीं आई
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