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वेरा पावलवना 19वीं सदी के रुसी साहित्यकार निकलाई चेर्निशेफ्स्की की रचना "क्या किया जाए?" की मुख्य पात्रों में से एक है।
वेरा का पहला स्वप्न
वेरा सपना देखती है।
वह सपने में देखती है, कि वह सीलन भरे, अंधेरे तहखाने में बंद है। कि अचानक दरवाजा गायब हो जाता है और वेरा खुद को खेत में पाती है, वह दौड़ रही है, कूद रही है और सोचती है: "ऐसा कैसे हुआ कि मैं उस तहखाने में मर नहीं गई?" - "ऐसा इसलिए हुआ कि मैने खेत कभी देखे नहीं थे; अगर मैने देखे होते, तो तहखाने में मर ही गई होती"- और वह फिर दौड़ रही है, कूद रही है। वह सपने में देखती है कि उसके पैर लकवा ग्रस्त हैं और वह सोचती है:
" मैं लकवा ग्रस्त कैसे हो गई ये तो बुढ़ों, बुढ़ियों को होता है, जवान लड़कियों को तो बिल्कुल नहीं"।
"होता है, अक्सर होता है" - किसी की अनजान आवाज सुनाई देती है, - "और तुम अब स्वस्थ हो जाओगी, ये देखो मेरे हाथों के स्पर्श से, - देख रही हो, तुम स्वस्थ हो गई,- चलो उठो"
- "कौन बोल रहा है? - और कितना हल्का महसूस कर रही हूँ - सारी बिमारी जैसे छु मंतर हो गई" - और वेरा उठ खड़ी हुई, वह चल रही है, दौड़ी रही है, एक बार फिर खेत में , एक बार फिर कूद रही है, दौड़ रही है, और फिर सोचती है, "यह कैसे हुआ कि मैं लकवे को सह पाई - ऐसा इसलिए कि मैं पैदा ही लकवा ग्रस्त हुई थी, जानती ही नहीं थी कि चलते कैसे हैँ, दौड़ते कैसे हैं अगर जानती होती तो नहीं सह पाती।" और भागती है, कूदती है। देखो तो खेत में चली जा रही है लड़की - कितनी अजीब बात है - और चेहरा, और चाल, सब बदलता जा रहा है, उसके भीतर अनवरत सब बदलता जा रहा है - देखो वो अंग्रेजन हो गई, देखो फ्रांसिसी, देखो तो वो अब जर्मन हो गई, पोलीश, वो अब रुसी हो गई, फिर अंग्रेजन, फिर जर्मन, फिर रुसी - ऐसा कैसे है कि उसका चेहरा एक ही है? और फिर अंग्रेजन और फ्रांसीसी एक जैसी तो नही होतीं, जर्मन रुसी जैसी नहीं होती, और उसका चेहरा बदल भी रहा है, और फिर भी चेहरा एक ही है - कितनी अजीब बात है और चेहरे के भाव भी अनवरत बदल रहे हैं: कैसी मासूम है! कैसी गुस्सैल! वो देखो दुखी, वो देखो खुश, - सब बदलता जा रहा है! कैसी दयालु, - ऐसा कैसे है कि जब वह गुस्से में है तो ऐसी दयालु दिख रही है? पर इतना ही नहीं, कितनी खुबशूरत है यह! चेहरा चाहे कितना ही बदल जाए, हर बदलाव के साथ और सुन्दर, और सुन्दर। वह वेरा के समीप जाती है - "तुम कौन हो?" - " वह पहले मुझे वेरा पावलवना कहता था, और अब कहता है: मेरी दोस्त" - "अच्छा तो ये तुम हो, वही वेरा, जो मुझसे प्रेम करती थी?" - " हाँ, मैं आपको दिलो-जान से चाहती हूँ। पर आप हैं कौन?" - "मैं तुम्हारे मंगेतर की मंगेतर हूँ।" - "किस मंगेतर की?" - "मुझे मालूम नहीं। मैं अपने मंगेतरों को नहीं जानती। वो मुझे जानते हैं, मैं उन्हे जान ही नहीं सकती: वो ढेर सारे हैं। तुम अपने लिए, अपने लिए किसी एक को अपना मंगेतर चुन लो, सिर्फ उनमें से ही, मेरे मंगेतरों में से किसी एक को"। - "मैने चुन लिया है..." - "मुझे नाम से कुछ नही लेना, मैं उनके नाम नही जानती। सिर्फ उनमें से ही, मेरे मंगेतरों में से। मैं चाहती हूँ कि मेरी बहने और मेरे मंगेतर सिर्फ एक दूसरे को चुने। तो क्या तुम तहखाने में बंद थी? क्या तुम लकवा ग्रस्त थी?" - "थी" - "अब ठीक हो गई?" - "हाँ"। - "ये मैने तुम्हे आजाद किया है, मैने तुम्हारा इलाज किया है। याद रखना और बहुत सारी कैद हैं, रोगी हैं। उन्हे आजाद करो, उनका इलाज करो। करोगी न?" - "करुँगी। तुम सिर्फ अपना नाम बता दो? मैं व्याकुल हूँ जानने के लिए"। - "मेरे बहुत सारे नाम हैं। मेरे तरह-तरह के नाम हैं। जो मुझे जैसे नाम से जानना चाहता है, उसे मैं वैसा ही नाम बताती हूँ। तुम मुझे लोगों का प्यार कह सकती हो। यही मेरा सच्चा नाम है। कुछ मुझे इसी नाम से बुलाते हैं। तुम भी मुझे इसी नाम से पुकारो"। - वेरा अब शहर भर में घूम रही है:वो देखो तहखाना,- तहखाने में लड़कियाँ बंद हैं। वेरा ने ताले को छुआ है, - ताला जैसे छु मंतर हो गया: "जाइए आप सब" - वो सब बाहर निकल आती हैं। वो रहा कमरा, - कमरे में लकवा ग्रस्त लड़कियाँ लेटी हैं: "उठ जाइए आप सब" - वे उठ खड़ी होती हैं, चलने लगती है, वो सब एक बार फिर खेत में हैं, दौड़ रही हैं कूद रही हैं, - आहा, कितनी खुश हूँ मैं! अकेले की अपेक्षा इन सब के साथ मैं और अधिक खुश हूँ! आहा, कितनी खुश हूँ मैं!